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Showing posts from September, 2016

खोरठा लिपि

खोरठा लिपि खोरठा लिपि : एक परिचय खोरठा लिपि में क+अ - का माना गया है और लिखने के क्रम में आकार मात्रा अलग से लगाया जाता है। खोरठा लिपि मेें क$अ - का लिखा और पढ़ा भी जाता है। अलग आकार की मात्रा खोरठा लिपि में नहीं लगाया जाता है। इसी पाँच स्वर वर्ण को मात्रा की जगर हुबहु लिखा और पढ़ा जाता है। जैसे - क+अ- का, क+इ- कि, क+इइ-की, क+ए- के, क+एए- कै, क+उ- कु, क+उउ- कू, क+ए- के, क+एए- कै, क+उ- कु, क+उउ- कू, क+अउ- को, क+अउउ- कौ के अलावे खोरठा लिपि में ’ओ’ स्वतंत्र वर्ण है। खोरठा भाषा के उच्चारण में आधा वर्ण नहीं होता है और न ही संयुक्ताक्षर अक्षर या शब्द होते हैं। ऐसे में इस खोरठा लिपि का प्रयोग खोरठा लेखन में सरलता से किया जा सकता है। खोरठा में जो संयुक्ताक्षर के शब्द प्रचलित हैं वे पूर्णतः संस्कृत अथवा अन्य भाषा के शब्द हैं, बोल चाल में भी स्टेशन को ’टिसन’ और व्याकरण को ’बेयाकरन’ उच्चारण किया जाता है।

खोरठा हमारी- मातृभाषा

खोरठा लिपि खोरठा के लिए खोरठा लिपि ही क्यों ? किसी भाषा की कतिपय अपनी विशिष्ट ध्वनियाँ होती हैं। उन विशिष्ट ध्वनियों को किसी अन्य भाषा के लिए प्रयुक्त लिपि में अंकित करना कठिन होता है। यानी उधार की लिपि में किसी भाषा के लेखन-पठन में मानकर चलने की विवशता आ जाती है। यदि जो लिखा जाये वही पढ़ा जाये की आदर्श स्थिति की अपेक्षा करना है तो उस भाषा की पृथक व स्वतंत्र लिलि की आवश्यकता पड़ती है। खोरठा सहित झारखंडी भाषाओं में कुछ विशिष्ट ध्वनियाँ विद्यमान हैं जो भारत की अन्य भाषाओं में प्रायः दुर्लभ है। यद्यपि खोरठा भाषा को अंकित करने में नागरी लिपि के व्यवहार को सर्वाधिक मान्यता मिली है किंतु हमारी सभी ध्वनियों को नागरी लिपि उदभाषित करने में सक्षम नहीं है। ऐसी स्थिति में हमें मान कर चलने की विवशता उत्पन्न होती है। इस विवशता में कई समस्याएँ हैं, जहाँ लेखन में वर्त्तनीगत अराजकता वहीं पाठगत अनेकरूपता। एक लेखक अपनी भाषा की विशिष्ट ध्वनियों के लिए नागरी की जिन ध्वनियों का व्यवहार करता है, वहीं दूसरा लेखक कुछ और ध्वनियों का। इससे सामान्य पाठक को पाठ वाचन में कठिनाइयों का सामना करन...