आरक्षण
की जीतोड़ पढ़ाई, नाता
जुड़ता फिर भी बेकारी से
प्रतिभावान कटा जाता है
आरक्षण की आरी से।
नहीँ नियोजन होता उसका
प्रतिभा हो कितनी चाहे।
इम्तिहान में वो लाए नम्बर
भी जितनी चाहे ।
फिर भी वह बेदखल हो
रहा है वेतन सरकारी से
प्रतिभावान कटा जाता है
आरक्षण की आरी से।
भूख,गरीबी क्या जाति को
पूछ घरों में आती है।
कौन देखता है किसके घर
भूखी मुनिया सोती है।
नहीँ पेट में अन्न,पेट को
काट पढ़ाया बेटे को
उसे पढ़ाने को पैसे लाया था,
बेच बनी तरकारी से।
प्रतिभावान कटा जाता है
आरक्षण की आरी से।
आरक्षण का है वह अधिकारी
जो भूख आभाव में जीता हो
किसी जाती का हो चाहे
जिसको गरीबी ने लूटा हो
नहीँ सिफारिश करना हो
अब नेता से,अधिकारी से।
प्रतिभावान कटा जाता है
आरक्षण की आरी से।
दुर्दान्त दस्यु यह बन प्रचण्ड
इस तरह समाज में फैला है
हो विकराल मानवता को
अँधियारों में ठेला है
इस दस्यु को नेताओं ने
लाया है मक्कारी से
प्रतिभावान कटा जाता है
आरक्षण की आरी से।
नरेंद्र पाण्डेय
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