आज समाज केवल
शारीरिक रूप से संपन्न एवं धनी व्यक्तियों का ही सम्मान करता है l में आज बात करता
हूँ एक अपने अंगों से निशक्त लोगों की जिनकी समाज में लोग मज़ाक उड़ाते है एवं
उन्हें हेय दृष्टि से देखते है l व्यस्क एवं बुजुर्ग को तो छोडिये एक नासमझ बच्चा
भी उसका मजाक बनाते नही हिचकिचाते हैं l
एक व्यक्ति या बच्चें का क्या दोष अगर उनका कोई
अंग विकसित नहीं हो पाया तो ,पर लोग उनके पूर्व जन्म के पापों का फल समझ उनसे घृणा
करते है l अब वैसे बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को कौन समझाए की उनका अनुमान कितना
सही है l एक दिव्यांग व्यक्ति का जरा सा भी दोष नहीं होता अपने इस स्थिति का l
मैं आज एक विद्यालय गया था l मैंने देखा
एक दिव्यांग बच्चा , जो शारीरिक रूप से तो अपंग है परन्तु मानसिक रूप से सशक्त है
l फिर भी बाकि बच्चे उससे दुरी बना कर रखे थे l उसके साथ कोई भी बच्चा न तो बैठना
चाहता है और न ही उससे दोस्ती करना चाहता है l मैंने जब बाकि बच्चों से इस रवैये
का कारण पूछा तो बच्चों ने बताया – “उसके हाथ-पांव जैसे है कहीं मैं भी वैसा हो
गया तो ?” मुझे आश्चर्य हुआ की एक मासूम बच्चे में ऐसी भावना आई कहाँ से l इस सोंच
का कहीं ना कहीं समाज की ही देन है l
मेरी आपसे गुजारिश
है कि आप ऐसे निशक्त लोगों को हीन दृष्टि से ना देखे l उनका भी समाज में जीने का
उतना ही अधिकार है जितना कि आपका और हमारा l
धन्यवाद
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