सिंहासन से दूर हटो जनता इसका अधिकारी है
भूख गरीबी में झोंका हर एक नजर लाचार हुआ
तब जाकर आवाम के मन में ऐसा दिव्य विचार हुआ
तू नहीँ है सत्ता के लायक, तू तो इसका संहारी है।
सिंहासन से दूर हटो जनता इसका अधिकारी है।
देख लिया सबको सब दोजक केवल अपना भरता है
कैसी यह आज़ादी जब आवाम भूख से मरता है
पूँजी को पूँजी मिलती और भूखे से छिनती रोटी
हुआ जा रहा यह जाने पल पल और अधिक मोटी
हर एक निवाला उस भूखे को देने की तैयारी है।
सिंहासन :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::।
भाषण, निर्वाचन,आरक्षण केवल इतना ठाना है
बैमानी,मक्कारी,भ्रष्टाचारी को अपनाना है
नहीँ पनपने देगी जनता तेरे सारे मनसूबे
आरक्षण के दौर ने जम्मूदीप हमारे ले डूबे
मिलेगी उसको आरक्षण जो इसका उपहारी है
सिंहासन ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::।
हथियार बना कर आरक्षण को जाति जाति बाँट दिया
बढ़ते भारतवर्ष के पग को आरक्षण से काट दिया
ले तलवार वो आरक्षण की वक्र भुजाएँ काटेगी
घर्घर नाद सुनाती जनता हो सवार रथ आएगी
कर एक लीये वह चक्र सुदर्शन दूजे हाथ कटारी है
सिंहासन::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::।
बेरोजगारी का दंश झेलता निर्धन ब्राह्मण वंश यहाँ
क्या वध कर पायेगा कान्हा,एक नहीँ है कंश यहाँ
फिर निर्धन ब्राह्मण एक दिन,खड्ग परशु को धरेगा
खुद के दीपक से एक दिन, खुद ही घर जल जायेगा
आज नहीँ तो कल फूटेगी,क्रान्ति की चिंगारी है
सिंहासन:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::।
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