झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर दूर बेनीसागर में पांचवीं सदी से लेकर सत्रहवीं सदी तक विकसित शहर बसा था। इस बात का पता पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही खुदाई से चला है। पुरातत्व विभाग को यहां पांचवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक के कई अवशेष मिले हैं। हाल ही में विभाग द्वारा इस क्षेत्र का सर्वेक्षण भी किया गया है।
यहाँ खुदाई के दौरान सैकड़ों छोटे-बड़े शिवलिंग एवं अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ मिली है | ऐसा प्रतीत होता है कि उस काल में किसी विदेशी आक्रमणकारी ने इस मदिर को ध्वस्त कर दिया | परन्तु अभी भी इस स्थल पर जाने से उसी जमाने का अनुभव मिलेगा, जैसे मैं किसी प्राचीन काल के जीवन में आ गया हूँ |
इस स्थान पर भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है |
बेनीसागर अथवा बेनूसागर नाम संभवतः बेनू राजा के नाम पर पड़ा है जिन्होंने शायद इस विशाल तालाब का निर्माण कराया था | तालाब करीब 340 मीटर लम्बा एवं 300 मीटर चौड़ा है जिसके बारे में कर्नल टिक्केल ने पहली बार अपने रिपोर्ट में उल्लेख किया जब उस स्थान का भ्रमण सन 1840 ई. में करने के बाद किया था |बाद में श्री बेग्लर ने उस तालाब का भ्रमण 1875 ई. में किया जिन्हें कुछ मूर्तियाँ मिली और जिनके आधार पर उन्होंने इस स्थान का तिथि का निर्धारण सातवीं शताब्दी ई. किया | यद्यपि स्थानीय परम्परा के अनुसार कहा जाता है कि इस तालाब का निर्माण बेनू राजा ने करवाया था | पुरातत्विक दृष्टिकोण अभी तक यह निश्चित नहीं हो पाया है कि वास्तव में किसने इस तालाब का निर्माण कराया |
तालाब से लगभग 100 मीटर की दुरी पर पूर्व और दक्षिण पूर्व दिशा की ओर
भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण ने हाल ही में पुरातत्विक उत्खनन के दौरान दो पंचायतन मंदिर परिसर, कुछ धर्म-निरपेक्ष भग्नावशेष एवं कई मूर्तियों को प्रकाश में लाया है
जिसमे सूर्य, भैरव, लकुलोश, अग्नि, कुबेर, विशाल हनुमान आदि की मूर्तियाँ प्रमुख
है | इसके अलावा उत्खनन के दौरान एक पत्थर की सील (मुहर) मिली है जिस पर “प्रियांगु
धेयमचतुर्विद्य (चतुर्विद्य)” खुदा हुआ है | जिसका मतलब होता है कि एक व्यक्ति
जिसका नाम प्रियांगु था वह चारो वेदों में निपुण था | लेख की लिपि ब्राह्मी है और
उसकी भाषा संस्कृत है | जिसके आधार पर उसका तिथि निर्धारण पांचवीं सदी ई. किया जा
सकता है |
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