Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2015

मृत्यु सैय्या

मधुर मिलन करने मुझसे,          वह कैसे इठलाती  है । मुझे सेज सजानी अब तो,           देख प्रियतमा आती  है । ढोल बजेंगे लगेंगे नारे,         रथ सजेंगे मेरे जाने को। नम आँखों से विदा करेंगे,        लोग हमारी यादों को। पूरा जीवन डरा रहा  ,        कहीं मिलन न उससे हो जाए। सांसो की यह डोर मेरे ,          तन से दूर न हो जाए। पर आती जब इतरा कर,        मन को कितना भाती  है । मुझे.................. होकर संग चला इसके तब,         अपनों में मातम छाया। कहते तू तो चला मजे में मुझ पर, दुःख का बादल मंडराया। रोता बाप है कहीं बैठकर,        कहीं बैठकर भाई। त्रिया बेठी माथ पकड़कर,      छाती पीटती माई। पर आकर पास सभी के,  वह जीवन का सच बतलाती  है । मुझे............ यह अंतिम पड़ाव जीवन का, जहाँ सभी को जाना  है । समा जायेंगे सभी उसी में। न चलेगा कोई बहाना  है । क्या ...

सामाजिक व्यवस्था

सामाजिक व्यवस्था उठ जाग युवाओ देर न कर। अब शंखनाद तू कर दे। कर हुंकार उठे पीढ़ी। कुछ ऐसा तू कर दे। खड़ा हो जाए कोई भी नर। इस सत्ता के आगे। नस नस में उसके अब । आग तू ऐसा भर दे। उठ............। लोभी सत्ता के न रहेंगे,           मुंह छुपा कहीँ भागेंगे। सुख शांति मिलेगी जनता को,           तब और नही रोयेंगे। हो रहा कहीं पर लूट-मार         हो रहा कहीं पर अत्याचार। जनता चुप बैठी कहती है |           बढ़ गया है देखो भ्रष्टाचार। ख़त्म कर दे इस नीति को.            तू समाज को आग में न जलने दे। उठ................................ निंद्रा तोड़ तू अपनी अब।           सत्ता को ले तू अपने हाथ। अंतिम संस्कार कर दे इनको,           इनको और नही तू फलने दे। उठ..............................

परिश्रम का फल

परिश्रम का फल  परिश्रम से कोई नर,       नही सफलता पा सकता, होता सफल वही जीवन में,     जो समाज में लक्की है | कर कोशिश और बढ़ आगे,    फिर तेरी तरक्की पक्की है। जैसे चढ़ती चीटियाँ दिवार पर,        चढ़ती और फिसलती है। हार नही सकती वह कभी। क्योंकि, दृढ संकल्प वो करती है | संशय तनिक न मन में उसके। कि दिवार यह कच्ची है। कर कोशिश और बढ़ आगे............. कठिन नही कुछ भी जीवन में, जो तू नही कर सकता है। मत लोगो के तानो को तू।       अपने कानो में पड़ने दे। तेरे परिश्रम को देख,         कहेगी दुनियां धक्की है। कर कोशिश और बढ़ आगे............ सफल होगा जब तू जीवन में।         लोग तुझे पहचानेंगे। तेरी सफलता की गाथाएँ।        झूम झूम कर गाएंगे। फिर तेरा मन कहेगा तुझसे,        बोल तू कैसा लक्की है। कर कोशिश और बढ़ आगे ............

जीवन चक्र

जीवन चक्र रे मानव रथ रोक तू मन का।  देख प्रलय होने को हे। बहक रहा हे अस्व तुम्हारा।   दिल तेरा रोने को है। तू सवार इस पर है या, यह तेरी सवारी करता है  साध ले अब इसको तू इससे। व्यर्थ ही डरा करता है। वश में इसके गया अगर तू नाम तेरा खो जायेगा। सपनो का तेरे शीशमहल, पल में, चूर-चूर हो जायेगा। छल, द्वेष, पाखंड और झूठ यह करना तुझे सिखाएगा। जिससे तेरा छवि समाज में, और धूमिल हो जायेगा। कर लिया अगर इसको वश में, फिर नाम तेरा इनाम तेरा ||

धरती कहे पुकार

समय दे रहा क्यों मानव को धोखा। हो रहे हताहत लोग जाने क्या होगा ? संकट का बादल छा रहा मनुज के सर। महि डोल रही है देखो कहीँ कहीँ पर काल दे रहा सबको आमंत्रण है। छा रहा महिं पर लगता महामरण है। कई बार हिल उठी धरा सबने देखा। क्या खत्म हो जायेगी धरती की जीवन रेखा? लेकिन प्रकृति की है बात बड़ी निराली। रहेगी नही यह धरा ज़ीव से खाली। कहती छेड़ नही मुझको , मैं तुझको जीने दूंगी। तुम हो मेरे संतान कैसे मैं मरने दूंगी? पर क्या करूँ दूषित हो जाता हूँ तेरे कारण। जिसके कारण छाता है तुझ पर महामरण। पर हाय दोष न तनिक है इसमें मेरा। दोष दे रहा मुझे क्यों मन ये तेरा? देता हूँ में तभी काल को आमंत्रण। जब होता नही है मुझ पर मेरा नियंत्रण। समतुल्य बना जब मुझे काल जाता है। नई उमंग फिर मुझ में भर आता है।