मधुर मिलन करने मुझसे, वह कैसे इठलाती है । मुझे सेज सजानी अब तो, देख प्रियतमा आती है । ढोल बजेंगे लगेंगे नारे, रथ सजेंगे मेरे जाने को। नम आँखों से विदा करेंगे, लोग हमारी यादों को। पूरा जीवन डरा रहा , कहीं मिलन न उससे हो जाए। सांसो की यह डोर मेरे , तन से दूर न हो जाए। पर आती जब इतरा कर, मन को कितना भाती है । मुझे.................. होकर संग चला इसके तब, अपनों में मातम छाया। कहते तू तो चला मजे में मुझ पर, दुःख का बादल मंडराया। रोता बाप है कहीं बैठकर, कहीं बैठकर भाई। त्रिया बेठी माथ पकड़कर, छाती पीटती माई। पर आकर पास सभी के, वह जीवन का सच बतलाती है । मुझे............ यह अंतिम पड़ाव जीवन का, जहाँ सभी को जाना है । समा जायेंगे सभी उसी में। न चलेगा कोई बहाना है । क्या ...